सोमवार, 17 फ़रवरी 2025

न्यू मीडिया और उसका स्वरूप

 

न्यू मीडिया क्या है | इसके स्वरूप पर विस्तार से विचार कीजिए |

न्यू मीडिया (New Media) का अर्थ है वह मीडिया जो डिजिटल टेक्नोलॉजी, इंटरनेट और सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से निर्मित और प्रसारित होता है। यह पारंपरिक मीडिया (जैसे टेलीविजन, रेडियो, और प्रिंट मीडिया) से अलग है, क्योंकि न्यू मीडिया का मुख्य आधार इंटरनेट और डिजिटल नेटवर्क हैं। इसमें सोशल मीडिया, ब्लॉग, पोडकास्ट, वीडियो स्ट्रीमिंग, और मोबाइल एप्लिकेशन जैसे प्लेटफॉर्म शामिल हैं।

न्यू मीडिया के स्वरूप पर विस्तार से विचार:

1.     इंटरएक्टिविटी: न्यू मीडिया की सबसे बड़ी विशेषता उसकी इंटरएक्टिविटी है। पारंपरिक मीडिया में दर्शक केवल रिसीवर होते थे, जबकि न्यू मीडिया में उपयोगकर्ता खुद सामग्री का निर्माण कर सकते हैं, उसे साझा कर सकते हैं और उस पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं। उदाहरण स्वरूप, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, जहां लोग अपने विचार, चित्र, वीडियो और अन्य सामग्री साझा करते हैं।

2.     डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग: न्यू मीडिया पूरी तरह से डिजिटल टेक्नोलॉजी पर आधारित है। इसमें कंप्यूटर, स्मार्टफोन, और अन्य डिजिटल डिवाइस का उपयोग किया जाता है। सामग्री का निर्माण, प्रसारण और उपभोग डिजिटल फॉर्मेट में होता है।

3.     कंटेंट का अद्वितीय रूप: न्यू मीडिया के कंटेंट में ब्लॉग्स, वीडियो, इन्फोग्राफिक्स, और पॉडकास्ट जैसी नई विधाएँ शामिल हैं। ये मीडिया फॉर्म पारंपरिक टेलीविजन और रेडियो के मुकाबले अधिक विविध और सुलभ होते हैं। यूजर्स अब किसी भी समय, किसी भी स्थान पर इन सामग्री को एक्सेस कर सकते हैं।

4.     सोशल मीडिया का प्रभुत्व: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब ने न्यू मीडिया को नए आयाम दिए हैं। लोग इन प्लेटफॉर्म्स का उपयोग अपनी राय, विचार, समाचार और व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करने के लिए करते हैं। सोशल मीडिया ने संवाद के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है, जहां व्यक्तिगत से लेकर सार्वजनिक तक, सब कुछ साझा किया जा सकता है।

5.     स्मार्टफोन और ऐप्स का योगदान: स्मार्टफोन और मोबाइल ऐप्स ने न्यू मीडिया की पहुंच को और अधिक बढ़ा दिया है। अब लोग जहां भी होते हैं, इंटरनेट का उपयोग करके किसी भी प्रकार का कंटेंट एक्सेस कर सकते हैं। यूट्यूब, नेटफ्लिक्स, स्पॉटिफाई जैसे प्लेटफॉर्म्स मोबाइल के माध्यम से बिना किसी परेशानी के उपलब्ध हैं।

6.     डेटा और एलेगोरिदम का उपयोग: न्यू मीडिया में डेटा विश्लेषण और एलेगोरिदम का उपयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के तौर पर, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स यूजर्स की गतिविधियों को ट्रैक करते हैं और उसके आधार पर व्यक्तिगत विज्ञापन या कंटेंट की सिफारिश करते हैं। इसका उद्देश्य यूजर के हितों के अनुसार अधिक कस्टमाइज्ड अनुभव प्रदान करना है।

7.     वायरल कंटेंट: न्यू मीडिया में कंटेंट को वायरल होने की क्षमता होती है। एक वीडियो, ट्वीट या पोस्ट जो सोशल मीडिया पर शेयर होता है, वो बहुत जल्दी कई लोगों तक पहुंच सकता है, जिससे वह वायरल हो जाता है। यह विशेषता न्यू मीडिया को पारंपरिक मीडिया से अलग करती है, क्योंकि पारंपरिक मीडिया में कंटेंट का प्रसारण सीमित होता है।

8.     समय और स्थान की बाधाएं समाप्त: न्यू मीडिया के माध्यम से किसी भी सूचना या कंटेंट को दुनिया के किसी भी कोने में, किसी भी समय देखा जा सकता है। यह पारंपरिक मीडिया की तुलना में बहुत लचीला और सुविधाजनक है।

निष्कर्ष: न्यू मीडिया ने सूचना प्रसारण के पारंपरिक तरीकों को पूरी तरह से बदल दिया है और यह अधिक गतिशील, इंटरएक्टिव, और उपयोगकर्ता-केंद्रित बन चुका है। इसके माध्यम से अब व्यक्तियों और संगठनों को अपनी आवाज़ को सीधे और प्रभावी रूप से पहुंचाने का अवसर मिल रहा है। साथ ही, यह सोशल नेटवर्किंग, राजनीति, मनोरंजन, शिक्षा और व्यवसाय के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है।

 

शॉर्ट्स क्या है और न्यू मीडिया सामग्री के तौर पर इसका महत्त्व

 

शॉर्ट्स क्या है और न्यू मीडिया सामग्री के तौर पर इसका महत्त्व निरूपित कीजिए |

शॉर्ट्स, विशेष रूप से सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर, छोटे वीडियो कंटेंट के रूप में लोकप्रिय हुए हैं। शॉर्ट्स का मतलब है कि ये वीडियो बहुत छोटे होते हैं, आमतौर पर 15 सेकंड से लेकर 1 मिनट तक के होते हैं। इन वीडियो में उपयोगकर्ता जल्दी से कोई संदेश, विचार, या मनोरंजन साझा कर सकते हैं। शॉर्ट्स की विशेषता यह है कि वे दर्शकों का ध्यान तुरंत आकर्षित करने के लिए डिज़ाइन किए गए होते हैं और छोटे समय में अधिक प्रभाव डालने की कोशिश करते हैं। YouTube Shorts, Instagram Reels, TikTok, और Snapchat जैसे प्लेटफॉर्म्स पर इनका प्रभाव देखा जा सकता है। शॉर्ट्स ने मनोरंजन, जानकारी और डिजिटल कनेक्टिविटी का नया रूप पेश किया है।

शॉर्ट्स के प्रकार:

1.     मनोरंजन शॉर्ट्स: यह शॉर्ट्स का सबसे सामान्य रूप है, जिसमें लोग डांस, हंसी-मजाक, या किसी मनोरंजक घटना को शेयर करते हैं। TikTok और Instagram Reels जैसे प्लेटफॉर्म्स पर इनका बोलबाला है। ये वीडियो ताजगी और मनोरंजन प्रदान करते हैं, और दर्शकों को हंसी और खुशी का अहसास कराते हैं।

2.     शैक्षिक शॉर्ट्स: शॉर्ट्स का दूसरा रूप शैक्षिक कंटेंट है। इसमें, कोई भी जटिल जानकारी या अवधारणा को एक संक्षिप्त और आसान तरीके से समझाया जाता है। उदाहरण स्वरूप, गणित के टिप्स, विज्ञान के तथ्य, या किसी भाषा का शॉर्ट कोर्स शॉर्ट्स के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं।

3.     प्रोफेशनल शॉर्ट्स: व्यवसायिक और पेशेवर क्षेत्र में शॉर्ट्स का उपयोग बढ़ रहा है। लोग अपने कार्यक्षेत्र से जुड़ी जानकारी या टिप्स साझा करते हैं, जिससे वे अपनी विशेषज्ञता को दर्शाते हैं और अपने व्यक्तिगत ब्रांड को मजबूत करते हैं। LinkedIn पर ऐसे शॉर्ट्स देखने को मिलते हैं, जिसमें कोई कार्यकुशलता, उद्योग से संबंधित जानकारी या नवीनतम अपडेट्स साझा किए जाते हैं।

4.     समाचार और घटनाएँ: शॉर्ट्स वीडियो का एक महत्वपूर्ण उपयोग समाचारों और घटनाओं को तुरंत प्रसारित करने में किया जाता है। मीडिया कंपनियाँ और समाचार चैनल्स शॉर्ट्स के माध्यम से ताजातरीन घटनाओं, आपदाओं, और अपडेट्स को मिनटों में प्रसारित करते हैं।

शॉर्ट्स की विशेषताएँ और महत्त्व:

1.     संचार का त्वरित तरीका: शॉर्ट्स वीडियो ने संचार की गति को तेज़ कर दिया है। बड़े और लंबी अवधि वाले वीडियो कंटेंट के मुकाबले, शॉर्ट्स का समय बहुत कम होता है, जिससे लोग जल्दी से किसी भी विषय के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण स्वरूप, कोई व्यक्ति शॉर्ट्स वीडियो देखकर नवीनतम समाचार, मनोरंजन, या शैक्षिक सामग्री तुरंत प्राप्त कर सकता है।

2.     सुलभता और लचीलापन: शॉर्ट्स वीडियो इंटरनेट के माध्यम से देखे जा सकते हैं और ये कहीं भी, कभी भी देखा जा सकता है। वे छोटे होते हैं और किसी भी डिवाइस पर देखे जा सकते हैं, जैसे स्मार्टफोन, टैबलेट, या कंप्यूटर। यह लोगों को उनकी दिनचर्या के दौरान भी शॉर्ट्स वीडियो देखने की सुविधा देता है।

3.     आकर्षक और प्रभावी: शॉर्ट्स की संक्षिप्तता ही उनकी शक्ति है। क्योंकि इन वीडियो का समय सीमित होता है, ये लोगों का ध्यान जल्दी से आकर्षित करते हैं और उन्हें एक बिंदु पर केंद्रित करते हैं। एक अच्छे शॉर्ट्स वीडियो में, संदेश या विचार बहुत प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है। यही कारण है कि शॉर्ट्स ने डिजिटल मार्केटिंग और सोशल मीडिया प्रचार में अपनी अहम भूमिका निभाई है।

4.     कंटेंट की विविधता: शॉर्ट्स वीडियो कंटेंट का एक बड़ा लाभ यह है कि ये किसी भी विषय पर हो सकते हैं। चाहे वह व्यक्तिगत अनुभव हो, शैक्षिक जानकारी हो, या केवल हास्य हो, शॉर्ट्स के माध्यम से हर प्रकार का कंटेंट आसानी से साझा किया जा सकता है। इससे दर्शक अपने मनपसंद विषयों को बहुत जल्दी और आसानी से पा सकते हैं।

5.     वायरल होने की क्षमता: शॉर्ट्स वीडियो में वायरल होने की अधिक क्षमता होती है, क्योंकि इनकी लघुता और आकर्षण लोगों को साझा करने के लिए प्रेरित करते हैं। सोशल मीडिया पर इन वीडियो के वायरल होने से किसी भी विचार, उत्पाद, या विषय को व्यापक प्रचार मिलता है। यह न केवल व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं के लिए बल्कि व्यवसायों और ब्रांड्स के लिए भी फायदेमंद है।

शॉर्ट्स के सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव:

1.     नवीनता और रचनात्मकता: शॉर्ट्स वीडियो के माध्यम से रचनात्मकता को एक नया मंच मिला है। लोग अपनी कला, अभिनय, डांस, संगीत, और अन्य शैलियों को प्रदर्शित करते हैं। यह सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देता है और दुनिया भर के लोगों को एक साथ लाता है। शॉर्ट्स ने विश्वभर के व्यक्तियों को अपनी कला और विचारों को साझा करने का एक आसान और प्रभावी तरीका प्रदान किया है।

2.     व्यक्तिगत ब्रांडिंग और पहचान: शॉर्ट्स वीडियो के जरिए लोग अपनी व्यक्तिगत पहचान और ब्रांडिंग को स्थापित कर सकते हैं। यह उन्हें एक व्यापक दर्शक वर्ग के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। बहुत से इन्फ्लुएंसर और क्रिएटर्स ने शॉर्ट्स के माध्यम से अपनी पहचान बनाई है और वे अब प्रभावशाली व्यक्तित्व बन गए हैं।

3.     सूचना का त्वरित प्रसार: शॉर्ट्स वीडियो ने सूचना प्रसारण को तेजी से किया है। समय के साथ, शॉर्ट्स ने समाचार, घटनाओं, और सोशल मुद्दों पर त्वरित प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न की हैं। उदाहरण के रूप में, प्राकृतिक आपदाओं, राजनीति, या अन्य बड़ी घटनाओं पर शॉर्ट्स वीडियो के जरिए ताजातरीन अपडेट्स प्रदान किए जाते हैं, जो कि पारंपरिक मीडिया की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी और तेज़ होते हैं।

निष्कर्ष:

शॉर्ट्स वीडियो न्यू मीडिया का एक अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं, जो संचार, मनोरंजन, और जानकारी को एक नए तरीके से प्रस्तुत करते हैं। वे त्वरित, आकर्षक, और सुलभ होते हैं, जो दर्शकों को अपनी ओर खींचते हैं। शॉर्ट्स की विशेषता यह है कि ये किसी भी विचार, कला, या सूचना को संक्षिप्त और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करते हैं। हालांकि शॉर्ट्स के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं जैसे गुणवत्ता की कमी, सतही जानकारी, और समय की बर्बादी, फिर भी इनका महत्त्व न्यू मीडिया में अपार है। शॉर्ट्स ने सूचना, मनोरंजन, और शिक्षा के क्षेत्र में एक नया आयाम स्थापित किया है और आने वाले समय में यह और भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।


गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

काव्य-लक्षण के संबंध में भारतीय आचार्यों के मतों की समीक्षा

काव्य-लक्षण का सामान्य अर्थ है – काव्य का स्वरूप अर्थात् काव्य क्या है ? काव्य किसे कहा जा सकता है ? इस मूलभूत प्रश्न पर संस्कृत के आचार्यों ने गहन चिंतन-मंथन किया और अपने-अपने दृष्टिकोण से इसकी व्याख्या की |  ‘काव्य’ शब्द कवि से बना है | कवि को वेदों में ‘परमेश्वर’ भी कहा गया है – ‘कविर्मनीषी परिभू स्वयंभू’ | जो कविता करता है, सबका वर्णन करता है, उसे कवि कहते हैं | कवि के मन और बुद्धि से निकले शब्द काव्य होते हैं जो पाठक अथवा श्रोता को उदात्त भावानुभूति और रसानुभूति कराता है | कई भारतीय विद्वानों ने काव्य-लक्षण के संबंध में अपना दृष्टिकोण दिया है |

काव्य के लक्षणों पर विचार करने वाले पहले आचार्य भरतमुनि माने जाते हैं । उनके द्वारा प्रतिपादित 'नाट्यशास्त्र' में नाट्य को ही साहित्य या काव्य भी माना गया है। राजशेखर ने नाट्यशास्त्र को 'पंचम वेद' की संज्ञा दी है । हालांकि भरत ने स्पष्टतः किसी काव्य-लक्षण का उल्लेख नहीं किया है। भरत ने काव्य की शोभा बढ़ाने वाले ३६ लक्षणों का वर्णन किया है और काव्य कला की प्रशस्ति इस प्रकार की है --

"मृदुललित पदाढ्यं गूढ़शब्दार्थहीनं जनपदसुखबोध्यं युक्तिमन्नृत्ययोज्यम् ।
बहुकृतरसमार्गं संधिसंधानयुक्तं स भवति शुभकाव्यं नाटकप्रेक्षकाणाम्॥"

यहाँ क्रमशः सात विशेषताएँ वर्णित हैं मृदुललित पदावली, गूढ़शब्दार्थहीनता, सर्वसुगमता, युक्तिमत्ता, नृत्योपयोगयोग्यता, बहुकृतरसमार्गता तथा संधियुक्तता। इसमें पाँचवाँ तथा सातवाँ नाटक की दृष्टि से वर्णित हैं, शेष में गुण, रीति, रस एवं अलंकार का वर्णन है।

काव्य-लक्षण का वास्तविक विकास भामह से होता है । उनके अनुसार शब्द एवं अर्थ का सहभाव ही काव्य है — "शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्" ।

वे कहते हैं कि जहां शब्द और अर्थ परस्पर सहित भाव या प्रतिस्पर्धा करते हुए सामने आते हैं, वहाँ शब्दार्थ सन्निधि में काव्यत्व होता है। भामह के अनुसार शब्दालंकार और अर्थालंकार, दोनों का सहभाव ही काव्य-सौंदर्य का द्योतक है। वे शब्द और अर्थ को समान महत्व देते हुए दोनों के प्रतिस्पर्धा और सामंजस्य की उपयोगिता सिद्ध करते हैं । शब्द और अर्थ के इसी प्रतिस्पर्धा और सामंजस्य से चारूत्व अर्थात् सौन्दर्य की निष्पत्ति होती है, जिसे बाद में पण्डितराज जगन्नाथ ने रमणीयता कहा है । भामह की यह परिभाषा अपूर्ण है क्योंकि शब्द और अर्थ से युक्त तो व्याकरण, दर्शन आदि से संबंधित ग्रन्थ भी होते हैं परन्तु उन्हें काव्य नहीं कहा जा सकता |

भामह के पश्चात दंडी ने काव्य का लक्षण बताते हुए माना कि 'शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्नापदावली', अर्थात काव्य का शरीर वांछित अर्थ को उद्घाटित करने वाली पदावली होती है । डॉ॰ नगेंद्र ने भामह के काव्य लक्षण से दंडी के काव्य लक्षण की समता का विश्लेषण किया है । नगेंद्र के अनुसार इष्टार्थ को अभिव्यक्त करने वाला शब्द और शब्दार्थ का साहित्य, सहभाव या सामंजस्य एक ही बात है, क्योंकि कोई शब्द इष्ट अर्थ की अभिव्यक्ति तभी कर सकता है जब शब्द और अर्थ में पूर्ण सहभाव या सामंजस्य हो।

'रीतिरात्मा काव्यस्य' रीति को काव्य की आत्मा मानने वाले वामन ने काव्य का कोई स्वतंत्र लक्षण नहीं दिया है, किंतु रीति वर्णन में उनके विचार उपलब्ध होते हैं। उनके अनुसार सौंदर्य के कारण काव्य ग्राह्य होते हैं और अलंकार को ही सौंदर्य कहते हैं –

"काव्यं ग्राह्यमलंकारात् ।

सौंदर्यमलंकाराः।"

काव्य में सौंदर्य दोषों के त्याग और गुणों के ग्रहण के कारण उत्पन्न होता है। वे गुण और अलंकार से युक्त शब्दार्थ को ही काव्य कहते हैं। वामन अलंकारों की अपेक्षा गुण को अधिक महत्व देकर काव्य-चिंतन को एक नई दिशा प्रदान करते हैं, साथ ही भामह और दंडी के विचार-परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।

रूद्रट ने भामह का अनुकरण करते हुए काव्य-लक्षण के विवेचन के क्रम में शब्द और अर्थ दोनों के समन्वय को काव्य माना  — 'शब्दार्थौ काव्यम्'

'ध्वन्यालोक' के रचयिता आचार्य आनंदवर्धन ने काव्य लक्षण पर विचार करते हुए ऐसे शब्दार्थ को काव्य माना है जो सहृदय के हृदय को आह्लादित (आनंदित) कर दे। उन्होंने ध्वनि को काव्य की आत्मा माना है।

"काव्यस्यात्मा ध्वनि:। सहृदयहृदयाह्लादिशब्दार्थमयत्वमेव काव्यलक्षणम्।"  

आचार्य कुंतक ने भी भामह की तरह शब्द और अर्थ के सहभाव को काव्य माना | उनके  अनुसार अलंकार से युक्त शब्द और अर्थ काव्य है - "शब्दार्थौ सहितौ वक्रकविव्यापारशालिनी। बंधे व्यवस्थितौ काव्यं तद्विदाह्लादकारिणी॥"

वे अलंकार को काव्य के बाह्य सौंदर्य का विधायक न मानकर उसका मूल आधार स्वीकार करते हैं। वे काव्य का व्यवस्थित लक्षण प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि काव्यमर्मज्ञों को आह्लादित करने वाली वक्रतामय, कविकौशल-युक्त रचना में स्थित शब्द और अर्थ ही काव्य है ।

काव्य-लक्षण के संबंध में आचार्य मम्मट का लक्षण प्रौढ़ एवं सुदीर्घ चिंतन का परिणाम है। उनके अनुसार दोषरहित, गुणसहित तथा यथासंभव अलंकारयुक्त शब्दार्थ ही काव्य है । उन्होंने काव्य में अलंकार की स्थिति वैकल्पिक मानकर उसे गौण बना दिया है

"तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि"।

अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'काव्य प्रकाश' में मम्मट ने काव्य को परिभाषित करते हुए कहा है कि वहाँ (काव्य में) शब्द और अर्थ का सहभाव दोष रहित, गुण सहित और कहीं पर बिना अलंकृति के भी होता है। अदोष का तात्पर्य है काव्य को दोषों जैसे क्लिष्टत्व, श्रुतिकटुत्व, ग्राम्यत्व, अश्लीलत्व आदि से रहित होना चाहिए । गुण का तात्पर्य है भरतमुनि द्वारा निर्दिष्ट काव्य गुणों जैसे माधुर्य, ओज, समता, समाधि, श्लेष आदि गुणों से युक्त होना चाहिए। ऐसे शब्दार्थ के संयोजन में कहीं-कहीं बिना अलंकार के भी काम चल सकता है। काव्य दोषों से रहित गुणों के सहित कही कही पर अलंकार से युक्त जो शस्त्र होता है वह काव्य शास्त्र कहलाता है |

आचार्य विश्वनाथ के अनुसार "वाक्यं रसात्मकं काव्यम्" अर्थात् रसात्मक वाक्य ही काव्य होता है। यहाँ आचार्य विश्वनाथ ने पहली बार शब्दार्थ की जगह वाक्य में काव्यत्व की स्थिति मानी है। उनका कहना है कि केवल सुन्दर शब्दों को एक साथ रख देने से काव्य नहीं हो जाता। काव्यत्व तो तब होगा जब वे सब एक वाक्य का रूप लेकर आएं और वाक्य भी रसात्मक होना चाहिए। रसात्मक के भीतर चारूत्व, दोषराहित्य, गुणों का समावेश और समुचित अलंकार विधान भी आ जाता है। दरअसल यहाँ पर आचार्य ने अपने से पूर्ववर्ती आचार्यों के मन्तव्यों का समावेश कर उसे रस से जोड़ कर काव्य तत्व के रूप में रसात्मकता को मान्यता दी, जो कि उचित ही था।

इसी तरह पंडित जगन्नाथ ने "रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्" अर्थात् रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाला शब्द ही काव्य है । रमणीय का अर्थ वही पूर्ववर्ती रसात्मकता है। यहाँ जगन्नाथ की मौलिक स्थापना यह है कि काव्यत्व शब्द में निहित होता है न कि सम्पूर्ण वाक्य में। रमणीयता या चारूत्व की स्थिति शब्द में मानने के पीछे वेदांत दर्शन और व्याकरण को आधार बनाया गया है।

हिंदी में रामचंद्र शुक्ल ने काव्य को परिभाषित करते हुए लिखा — "जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आयी है, उसे कविता कहते हैं।" शुक्ल जी की यह परिभाषा बताती है कि भारतीय साहित्यशास्त्र व्यावहारिक एवं संतुलित है। रस से उसका अभिप्राय आनंदबोध अथवा सौंदर्यबोध से है। रमणीयता जीवन के उस तत्व का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें अलौलिक भावना का सौंदर्य निहित होता है जो लोकजीवन को प्रभावित करता है। जीवन का राग झंकृत करने वाले काव्य-लक्षण की प्रस्तुति भारतीय काव्यशास्त्र की उपलब्धि है, जिसमें उसके बाह्य एवं आंतरिक पक्षों का समन्वय हुआ है।

निष्कर्षत: उपर्युक्त सभी आचार्यों में मम्मट, विश्वनाथ तथा जगन्नाथ के लक्षण अधिक व्यवस्थित तथा भारतीय काव्य-लक्षण-अवधारणा के तीन चरण हैं । अदोषता, रसवत्ता एवं रमणीयता इन तीन विशिष्टताओं से युक्त लक्षण प्रस्तुत कर संस्कृत-आचार्यों ने काव्य में भाव, कला एवं बुद्धि का समाहार किया है।