सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

'माखनलाल चतुर्वेदी की 'पुष्प की अभिलाषा' कविता का मूल उद्देश्य और राष्ट्रीय चेतना

 

राष्ट्रीय चेतना का आख्यान- पुष्प की अभिलाषा

 

‘पुष्प की अभिलाषा’ राष्ट्रीय काव्यधारा के मूर्धन्य हस्ताक्षर ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से विभूषित कवि माखनलाल चतुर्वेदी की बहुचर्चित कविता है | राष्ट्रीयता की भावना को पुष्प के मनोभावों के माध्यम से जिस आंतरिकता के साथ अभिव्यक्त किया गया है, वह स्तुत्य है | यह सर्वविदित है कि हम वर्षों तक अपने ही देश में विदेशियों के गुलाम बने हुए थे | कवि ने स्वयं गुलामी की पीड़ा को अनुभूत किया था | उन्होंने देश को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए रचनात्मक दृष्टि से कविताओं की रचना की, वहीं स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई | लोकमान्य तिलक और गांधीजी से प्रभावित होकर वे देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े | जेल की यातनामयी जिंदगी को इन्होंने कई बार अनुभूत किया | देश के प्रति वे तन-मन से समर्पित थे |

सन 1922 में विलासपुर जेल में लिखी गयी कविता  ‘पुष्प की अभिलाषा’ राष्ट्र के प्रति उनके गहन प्रेम और समर्पण की कविता है | कवि को अपने देश पर गर्व है | इसलिए वह उसपर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार है | वास्तव में पुष्प की अभिलाषा कवि की अपनी अभिलाषा है | देशानुराग से आबद्ध पुष्प की कामना यह नहीं है कि कोई उसे तोड़कर सुरबाला अर्थात् अप्सरा या देवकन्या के गहनों में गूंथकर उसके सौंदर्य को कई गुणा बढ़ा दें | जब देश के वीर देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में सहर्ष अपने तन को न्यौछावर कर रहे हो, ऐसे में भौतिक सौंदर्य का कोई मूल्य नहीं रह जाता है | पुष्प की अभिलाषा को व्यक्त करते हुए कवि ने लिखा है –

“चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ  |

चाह नहीं, प्रेमी-माला के बिंध प्यारी को ललचाऊँ ||”

 

पुष्प के लिए देश-प्रेम व्यक्तिगत-प्रेम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है | जब देश विदेशी दासता के बंधन में बंधा हो, तब व्यक्तिगत सुख और आनंद का कोई मोल नहीं रह जाता | इसलिए पुष्प व्यक्तिगत स्वार्थ के संकुचित क्षेत्र से निकल देश के लिए अपने व्यक्तिगत प्रेमभाव को तिरोहित कर  देता है |  

पुष्प अपने मनोभावों को प्रकट करते हुए कहता है कि वह सम्राटों के शव की शोभा बढ़ने का कारक नहीं बनना चाहता | उसकी  तनिक भी इच्छा नहीं है कि उसे सम्राटों के शव पर डालकर उसकी महत्ता को बढ़ाया जाए क्योंकि उसकी दृष्टि में देश की स्वतंत्रता में शहीद हुए वीर, इन सम्राटों से अधिक पूजनीय है  | स्वतंत्रता-सेनानियों का बलिदान निस्वार्थ: भाव से भरा हुआ है |

पुष्प की यह कामना भी नहीं है कि उसे देवताओं के सिर पर चढ़ाया जाए और वह इसे अपना सौभाग्य समझकर इठलाती रहें | पुष्प के लिए अपना स्वतंत्र देश, अपनी स्वतंत्र भूमि सौभाग्य का सूचक है | उसके लिए उसकी मातृभूमि ही देवस्थान है –

“चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ |

चाह नहीं, देवों के सिर पर चढ़ूँ, भाग्य पर इठलाऊँ ||”

माखनलाल चतुर्वेदी की देशोत्सर्ग की भावना कितनी गहरी है, इसे अंतिम चार पंक्तियों के माध्यम से समझा जा सकता है | पुष्प अपनी अभिलाषा प्रकट करते हुई कहता है कि हे वनमाली मुझे तोड़कर उस पथ पर फेंक देना जिस पथ से देश-प्रेमी वीर स्वतंत्रता की लड़ाई में अपनी मातृभूमि के लिए अपने सिर कटने अर्थात् मरने तक की परवाह नहीं करते -

“मुझे तोड़ लेना वनमाली |

उस पथ में देना तुम फेंक ||

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने |

जिस पथ जावें वीर अनेक ||”

यह कविता देश-प्रेम की अनूठी कविता है | इस कविता में  गौर करनेवाली बात यह है कि प्रत्यक्षत: यहाँ कोई मनुष्य अपनी अभिलाषा प्रकट नहीं कर रहा है, एक पुष्प अपनी अभिलाषा प्रकट कर रहा है और कैसी अभिलाषा, देश के लिए पूर्ण समर्पण की अभिलाषा | पुष्प जिसे आमतौर पर सजावट के लिए, देवों के उपासना के लिए या सौंदर्यवर्धन कारक के तौर पर उपयोग किया जाता है, उसकी अभिलाषा देशोत्सर्ग की है | यह छोटी-सी कविता पुष्प के मनोभावों को नहीं बल्कि समाज के उस वर्ग की अभिलाषा को उद्घाटित करता है, जिसका सीधा संबंध स्वाधीनता आन्दोलन से नहीं है | वह वर्ग जो प्रत्यक्षत: स्वाधीनता की लड़ाई नहीं लड़ सकता है पर इससे स्वाधीनता की लड़ाई में उसकी भूमिका नगण्य नहीं हो जाती है | यह कविता उस समय लिखी गयी जब प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक व्यक्ति को आजादी की लड़ाई के लिए सजग होने की जरूरत थी | देश सबका है, आजादी सबकी है और इसे पाने में सबकी भूमिका होनी चाहिए | यह कविता उसी मानसिकता को जगाने की कविता है | यह कविता सिर्फ देश प्रेम की कविता नहीं है, देश के प्रति प्रत्येक व्यक्ति के कर्तव्य-भावना और चेतनता की कविता है |

 

 

बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

रील्स क्या है और न्यू मीडिया सामग्री के तौर पर इसका महत्त्व

 

रील्स क्या है और न्यू मीडिया सामग्री के तौर पर इसका महत्त्व

सोशल मीडिया का इस्तेमाल आजकल के डिजिटल युग में बहुत बढ़ चुका है, और इसके द्वारा संचार के कई नए तरीके सामने आए हैं। इनमें से एक प्रमुख और लोकप्रिय तरीका "रील्स" है। रील्स, विशेष रूप से इंस्टाग्राम द्वारा पेश की गई एक वीडियो-शेयरिंग सुविधा है, जो छोटे वीडियो कंटेंट को आकर्षक और इंटरएक्टिव तरीके से प्रस्तुत करने का मौका देती है। रील्स वीडियो आमतौर पर 15 से 90 सेकंड तक के होते हैं और इनका उद्देश्य मनोरंजन, शिक्षा, और जानकारी का तेजी से संचार करना होता है।

रील्स का उभार और लोकप्रियता:

इंस्टाग्राम ने रील्स को 2020 में पेश किया, जो कि TikTok के हिट होने के बाद एक बड़ी प्रतियोगिता बनकर उभरा। TikTok, जो पहले से ही छोटी और आकर्षक वीडियो बनाने के लिए प्रसिद्ध था, ने इंस्टाग्राम को इस विचार पर विचार करने के लिए प्रेरित किया। रील्स की शुरुआत ने इंस्टाग्राम को एक नया आयाम दिया और शॉर्ट-फॉर्म वीडियो कंटेंट के लिए एक नए प्लेटफॉर्म के रूप में काम किया। इंस्टाग्राम रील्स ने यूज़र्स को छोटी अवधि में आकर्षक और रचनात्मक कंटेंट बनाने, साझा करने और उसे वायरल करने के नए अवसर प्रदान किए।

रील्स के प्रकार:

1.     मनोरंजन रील्स (Entertainment Reels): रील्स का सबसे प्रमुख उपयोग मनोरंजन के लिए होता है। इसमें लोग अपनी रचनात्मकता, डांस, गाने, प्रैंक और अन्य मनोरंजक गतिविधियों को संक्षिप्त वीडियो के रूप में साझा करते हैं। मनोरंजन के इन वीडियो को बनाने का तरीका सहज होता है और यह दर्शकों को हंसी और खुशी प्रदान करता है।

o    उदाहरण:

§  इंस्टाग्राम रील्स पर डांस चैलेंजेस, कॉमिक रील्स, और मिमिक्री वीडियो।

2.     शैक्षिक रील्स (Educational Reels): रील्स वीडियो का दूसरा रूप शैक्षिक उद्देश्य के लिए होता है। इसमें किसी भी विषय पर शॉर्ट टिप्स, ट्रिक्स, या संक्षिप्त शिक्षा दी जाती है। शैक्षिक रील्स की खासियत यह है कि लोग एक छोटे समय में एक कठिन या जटिल विषय को सरल तरीके से समझा सकते हैं।

o    उदाहरण:

§  गणित के आसान टिप्स, भाषा सीखने के लिए शॉर्ट कोर्स, या विज्ञान के सामान्य तथ्यों को सरल तरीके से प्रस्तुत करना।

3.     प्रोफेशनल रील्स (Professional Reels): आजकल रील्स का इस्तेमाल पेशेवर उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। लोग अपने कौशल, विशेषज्ञता, या किसी विशेष कार्यक्षेत्र से संबंधित जानकारी साझा करने के लिए रील्स का उपयोग करते हैं। इन वीडियो में छोटे टिप्स, टिपिकल प्रोफेशनल व्यवहार, या उद्योग से जुड़े महत्वपूर्ण अपडेट्स शामिल होते हैं।

o    उदाहरण:

§  व्यापारिक ट्रिक्स, व्यक्तिगत विकास के लिए टिप्स, या इंडस्ट्री न्यूज के बारे में जानकारी।

4.     समाचार रील्स (News Reels): रील्स का एक और रूप न्यूज अपडेट्स के लिए उपयोग होता है। इसमें ताजातरीन घटनाओं और समाचारों को संक्षिप्त रूप में दर्शाया जाता है। यह दर्शकों को महत्वपूर्ण घटनाओं से जल्दी अवगत कराता है, जैसे किसी आपातकालीन स्थिति, राजनीतिक घटनाएँ या अंतर्राष्ट्रीय समाचार।

o    उदाहरण:

§  किसी बड़े राजनीतिक घटनाक्रम या आपदा पर रील्स वीडियो।

 

रील्स के महत्त्वपूर्ण पहलू:

1.     सुलभता और पहुँच: रील्स की सबसे बड़ी ताकत इसकी सुलभता और पहुंच है। ये वीडियो छोटे होते हैं और किसी भी डिवाइस पर, जैसे स्मार्टफोन, टैबलेट या लैपटॉप, पर आसानी से देखे जा सकते हैं। इसका मतलब है कि दर्शक कहीं भी और कभी भी रील्स वीडियो देख सकते हैं, जिससे यह ज्यादा दर्शकों तक पहुँच सकता है।

2.     संक्षिप्तता और आकर्षण: रील्स वीडियो की संक्षिप्तता ही इसकी आकर्षण का कारण है। इन वीडियो का उद्देश्य एक मिनट के भीतर दर्शकों का ध्यान आकर्षित करना है। छोटे समय में सटीक और प्रभावी संदेश देना रील्स को बहुत प्रभावशाली बनाता है। यही कारण है कि रील्स का कंटेंट आमतौर पर आकर्षक, मनोरंजक और इंटरएक्टिव होता है।

3.     वायरलिटी का अवसर: रील्स वीडियो में वायरल होने की क्षमता बहुत अधिक होती है। इन वीडियो में ट्रेंड्स और चैलेंजेस का हिस्सा बनने की सुविधा होती है, जिससे ये तेजी से फैल सकते हैं। कोई रील्स वीडियो अगर उपयोगकर्ताओं को आकर्षित करता है, तो उसे कई लोग शेयर कर सकते हैं, और इस प्रकार यह वीडियो लाखों लोगों तक पहुँच सकता है। इससे व्यक्तिगत, ब्रांड, और उत्पाद प्रचार में भी मदद मिलती है।

4.     कंटेंट की विविधता: रील्स वीडियो का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इनका कंटेंट किसी भी प्रकार का हो सकता हैमनोरंजन, शिक्षा, प्रोफेशनल टिप्स, या समाचार। यह दर्शकों को एक ही प्लेटफॉर्म पर हर प्रकार का कंटेंट देखने का मौका देता है। इसकी लचीलापन और विविधता रील्स को न्यू मीडिया सामग्री के रूप में एक शक्तिशाली उपकरण बनाती है।

5.     व्यक्तिगत और ब्रांडिंग का एक माध्यम: रील्स का उपयोग सिर्फ व्यक्तिगत विचारों को साझा करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ब्रांड या व्यापार के प्रचार के लिए भी उपयोगी है। छोटे वीडियो के माध्यम से ब्रांड्स अपने उत्पादों या सेवाओं को पेश कर सकते हैं, नए उत्पाद लॉन्च कर सकते हैं, या अपने लक्षित दर्शकों से जुड़ सकते हैं। वहीं, व्यक्तिगत उपयोगकर्ता अपनी पहचान बना सकते हैं और फॉलोअर्स बढ़ा सकते हैं।

6.     समय की बचत: रील्स की लघु अवधि के कारण, दर्शक किसी भी कंटेंट को कम समय में देख सकते हैं। यह समय की बचत करता है और दर्शकों को जल्दी से उस कंटेंट का सार प्राप्त करने में मदद करता है, जिसे वे देखना चाहते हैं। साथ ही, रील्स वीडियो की छोटी अवधि उन्हें अधिक आसानी से पसंद किए जाने और साझा किए जाने योग्य बनाती है।

न्यू मीडिया सामग्री के तौर पर रील्स का महत्त्व:

1.     द्रुत संचार का माध्यम: रील्स न्यू मीडिया के एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में कार्य करते हैं क्योंकि ये सूचना और सामग्री के तेजी से प्रसार में मदद करते हैं। एक ही दिन में विभिन्न प्रकार के कंटेंट (मनोरंजन, समाचार, शिक्षा) को दर्शकों तक पहुँचाने का यह सबसे प्रभावी तरीका है। रील्स के जरिए विश्वभर में किसी भी सूचना का त्वरित प्रसारण संभव हो पाता है।

2.     सोशल मीडिया पर एक नया क्रांति: रील्स ने सोशल मीडिया की दुनिया में एक नई क्रांति ला दी है। पहले लोग सोशल मीडिया पर केवल टेक्स्ट, चित्र, और लंबे वीडियो देखते थे, लेकिन रील्स के आने से यह दृश्य बदल गया है। रील्स ने सोशल मीडिया इंटरैक्शन को और अधिक इंटरएक्टिव और आकर्षक बना दिया है। इससे सामाजिक नेटवर्क्स को अधिक सक्रिय और जीवंत बना दिया है, जिससे यूज़र्स अधिक भागीदारी महसूस करते हैं।

3.     शेयरिंग और प्रचार का एक साधन: रील्स के माध्यम से कंटेंट का प्रचार बहुत तेज़ी से होता है। छोटे और आकर्षक वीडियो जो आसानी से साझा किए जा सकते हैं, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अन्य यूज़र्स के बीच वायरल हो सकते हैं। यह एक प्रभावी मार्केटिंग उपकरण बन गया है, जो किसी भी व्यक्ति, ब्रांड या उत्पाद को अधिक ध्यान आकर्षित करने में मदद करता है।

4.     कला और अभिव्यक्ति का साधन: रील्स वीडियो ने व्यक्तियों को अपनी कला और रचनात्मकता को व्यक्त करने का नया मंच दिया है। लोग संगीत, नृत्य, अभिनय, और अन्य रचनात्मक शैलियों में अपने विचार प्रस्तुत कर सकते हैं। यह व्यक्तिगत ब्रांडिंग के लिए एक बेहतरीन तरीका साबित हुआ है, खासकर उन लोगों के लिए जो इन्फ्लुएंसर बनना चाहते हैं।

निष्कर्ष:

इंस्टाग्राम रील्स ने न्यू मीडिया के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है। इसके माध्यम से सोशल मीडिया उपयोगकर्ता अपनी रचनात्मकता और विचारों को संक्षिप्त और प्रभावी तरीके से साझा कर सकते हैं। रील्स ने मनोरंजन, शिक्षा, पेशेवर कौशल, और समाचार जैसी सामग्री को नए रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे यह एक महत्वपूर्ण और प्रभावी टूल बन गया है। इसके जरिए संचार की गति तेज़ हुई है, और लोगों को एक नए तरह के इंटरएक्टिव अनुभव का अवसर मिला है। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और रील्स की क्षमता के कारण, यह भविष्य में और भी अधिक महत्वपूर्ण बन सकता है।

स्त्री विमर्श और समकालीन हिंदी कविता - डॉ. शशि शर्मा

 

अपने वजूद के लिए संघर्षरत स्त्रियाँ और समकालीन कविता

             

एक समय था जब स्त्री घर की चार दिवारी में कैद दीवारों की तरह मौन रहा करती थी पर समय-परिवर्तन के साथ घर की चारदीवारी लांघकर, वह पुरूष के कदम से कदम मिलाकर चलने लगी | सदियों से चली आ रही पुरूषतांत्रिक व्यवस्था में स्त्री का पुरूष के कदम से कदम मिलाकर चलना एक क्रांतिकारी कदम अवश्य था पर इसे अगर पुरूषवादी मानसिकता का पतन समझा जाए तो शत-प्रतिशत सही नहीं होगा | यह सच है कि स्त्री आज अपने पारम्परिक रूप से मुक्त हुई है पर क्या वह पुरूषवादी मानसिकता से मुक्त हो पाई है ?अखबारों के पन्ने और न्यूज चैनलों पर आए दिन स्त्री-उत्पीड़न की जो तस्वीरें देखने को मिलती हैं, उससे तो यही प्रतीत होता है कि शिक्षित हो या अशिक्षित, नौकरीपेशा हो या घरेलू, आधुनिक हो या ग्रामीण - स्त्री आज भी पुरूषवर्चस्ववादी मानसिकता के कारण पीड़ित और अवहेलित है | उसकी अस्मिता, उसका वजूद हमेशा से खतरे में हैं |

आज की स्त्री कई भूमिकाओं को एक साथ निभा रही हैं | घर, परिवार, कैरियर सबमें सामंजस्य बैठा रही है, बावजूद इसके उसकी महत्ता को अंडरएस्टीमेटकिया जाता है | उसकी प्रतिभा, उसके विलक्षण सोच, उसके कृतित्व को खुले दिल से सराहने के बजाए उसे मानसिक और दैहिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है | स्त्री भी मनुष्य है, उसकी भी एक अलग सत्ता है, उसका भी अपना वजूद है, इस सोच से हमारा समाज आज भी कोसों दूर हैं | ‘स्त्री चिंतन की चुनौतियाँ’ नामक पुस्तक में रेखा कस्तवार लिखती है -“ आज भी मनुष्यकी अवधारणा में स्त्री और पुरूष दोनों को शामिल नहीं किया जाता | सचेत रूप में स्त्री को इससे अलगाने की कोशिशें ख़त्म नहीं हुई हैं|1

स्त्री-जीवन के इस त्रासद पहलू को कई कवियों ने शब्दबद्ध किया | जिनमें स्त्री और पुरूष दोनों ही है | जहाँ स्त्री रचनाकारों का यह स्वानुभूत सत्य रहा, वहीं पुरूषवादी मानसिकता से मुक्त कई पुरूष रचनाकारों ने स्त्री की इस व्यथा को महसूस करते  हुए उस पीड़ा को कलमबद्ध किया |

समाज स्त्री की सार्थकता घर-परिवार की गुलामी में समझता है | उसकी शिक्षा,उसकी आकांक्षा, उसकी इच्छा का कोई महत्व नहीं | उसके दायरे को कर्तव्य के नाम पर सीमाबद्ध करने की चेष्टा समकालीन कवि रघुवीर सहाय की बहुचर्चित कवितापढ़िए गीतामें देखी जा सकती है –“      पढ़िए गीता/ बनिए सीता/ फिर इन सबमें लगा पलीता / किसी मूर्ख की हो परिणीता /निज घर बार बसाइये |/ होंय कँटीली /आँखें गीली /लकड़ी सीली,तबियत ढीली /घर की सबसे बड़ी पतीली/ भरकर भात पसाइये |”2

यह छोटी-सी कविता स्त्री-जीवन के आरम्भ और अंत को विस्तार से व्यंजित करती है | एक स्त्री की पहचान उसके पति, बच्चे, सगे-संबंधी और घरेलू आपाधापी से हैं | इससे इतर भी उसका वजूद है, यह स्वीकारोक्ति अभी भी सीमित है |

अपने वजूद के लिए लड़ती स्त्री का संघर्ष असीम है | जीवन में स्त्री की अनिवार्यता को समझने के बावजूद पुरूष उसकी महत्ता को स्वीकार नहीं करना चाहता है | एक पत्नी और माँ के रूप में स्त्री पुरूष के जीवन को परिपूर्ण करती है, बावजूद इसके उसे हमेशा हाशिये पर रखा जाता है | समकालीन कवयित्री जया जादवानी इस पहलू पर लिखती है –“ जैसे हाशिये पर लिख देते हैं /बहुत फालतू शब्द और /कभी नहीं पढ़ते उन्हें/ ऐसे ही वह लिखी गयी और / पढ़ी नहीं गयी कभी / जबकि उसी से शुरू हुई थी / पूरी एक किताब |”3

औरतेंशीर्षक कविता में स्त्री को परिभाषित करती हुई चित्रा सिंह लिखती है – “ जिन्दगी के/चाक पर घूमती/गढ़ती हैं /रोज नए आकार /चक्की पर पिसती /चुन जैसी बारीक.../ चूल्हे की आँच में सिकती दोनों पहर/ आख़िरी बूँद सी पसीने की / ढुल जाया करती यूं ही जमीन पर / कई-कई बार धुली हुई /सफ़ेद चादर सी / बिछ जाया करती हैं / बिस्तर पर |4

स्त्री दैहिक और मानसिक सुख की कारक होती है | सुबह से रात तक वह अलग-अलग भूमिकाओं को निभाती हुई परिवारवालों को खुशियाँ देती है पर बदले में मिलती है तो केवल उपेक्षा और नयी-नयी जिम्मेदारियाँ |

 

आलोचक ए.अरविंदाक्षन लिखते हैं स्त्री अपने पारिवारिक दायित्वों से मुक्त नहीं होती है | यही से उसकी अस्वतन्त्रता का आरम्भ होता है | इसे पोषित करनेवाले कई घटक समाजवादी कहे जानेवाले समाजों में भी मिलते हैं | इस कारण परिवार, शैक्षिक संस्थाएँ और संचार माध्यम आदि स्त्री संबंधी अपनी पारंपरिक मान्यता को ही बढ़ावा देते रहते हैं | तमाम प्रकार की प्रगतिशील दृष्टियों के बावजूद ये स्त्री को परोक्षत: कटघरे में पाना चाहते हैं जिसे तोड़ना आसान नहीं |”5

स्त्री का निजत्व खतरे में हैं | वह बेटी है,बहन है, पत्नी है, बहू है, माँ है पर स्त्री नहीं है | उसका अपना स्पेसनहीं है | उसकी अपनी इच्छा-आकांक्षा और जरूरतें नहीं है | यहाँ तक की उसका घर भी उसका नहीं होता | जिस घर में वह पलती-बढ़ती है और जिस घर में वह विवाह पश्चात जाती है, कहीं भी वह अपना ‘स्पेस’ नहीं पाती है | घर उसके लिए महज एक कर्तव्य गृह है, जहाँ उसे केवल दूसरों का ख्याल रखना है | ज्योत्सना लिखती है – “वह उसका घर है /जहाँ वह बर्तनों के साथ बजती है /चूल्हे के साथ जलती /गीली स्मृतियों के साथ धुँआती आती है |”6

घरेलू स्त्रियाँ ही नहीं नौकरीपेशा उच्च शिक्षित स्त्रियाँ जो अपना वजूद गढ़ने की ओर अग्रसर होती है, उन्हें भी बार-बार पुरूष प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है | उनके पहनावे को पुरूष की भोगलोलुप मनोवृति का कारण ठहराया जाता है पर विचारणीय यह है कि क्या सिर्फ आधुनिक पहनावे वाली नौकरी पेशा स्त्रियाँ ही पुरूषों की मानसिक और दैहिक यौन-हिंसा का शिकार होती है ? नहीं | सच्चाई यह है कि स्त्रियाँ पहनावे की वजह से नहीं बल्कि पुरूष की ओछी मानसिकता के कारण हिंसा की शिकार होती है | पुरूष के लिए स्त्री सिर्फ उपभोग की वस्तु है | वह सिर्फ उसे भोगना चाहता है, दैहिक नहीं तो मानसिक तरीके से ही सही | समकालीन कवि पवन करण की कविता टायपिस्टइस सन्दर्भ में अवलोकनीय है हमसे कोई ऐसा नहीं /जो उसकी और अपने साथियों की/ नजर बचा-बचाकर/ उसके संतुलित अंगों की उत्तेजना को / अपने अंगों में /करता न रहता हो हरदम/ महसूस /उसे इस बात का कतई पता नहीं /हम उसके साथ कितनी ही बार/कल्पनाओं और सपनों के/चिर-युवा बिस्तर पर कर चुके हैं सहवास’’7 सुधीश पचौरी स्त्री देह के विमर्श में पुरूषों की इस भोगवादी मानसिकता पर लिखते हैं – “दफ्तरों, कार्यालयों में स्त्री सहभागिता ज्यों-ज्यों बढ़ रही है, स्त्री के प्रति उत्पीड़न भी उसी अनुपात में बढ़ रहा है | मर्दवादी लोगों ने छेड़ने के अपने शास्त्र के नए-नए संस्करण गढ़े हैं |8

समय परिवर्तित हो गया है परन्तु स्त्री के प्रति पुरूष की सामंती दृष्टि आज भी व्याप्त है | वह घर से बाहर तो निकल चुकी है किन्तु अस्तित्व गढ़ने के क्रम में पग-पग पर उसे विरोध के सम्मुखीन होना पड़ता है | पुरूषतांत्रिक व्यवस्था हर कदम पर उसे रोकने को तत्पर रहता है | समकालीन कवियित्री मनीषा झा लिखती है – “ मैं उड़ान भरने की रौ में थी / कि काट लिए गए मेरे पंख / मैं कुछ कहने को उठी थी /कि पड़ने लगी गालियों की बौछारें/ उन बौछारों के बीच / दब गई मेरी आवाज 9

अपने वजूद की लड़ाई लड़ती औरतों के लिए हर कदम पर रूकावट है | वह सिर्फ भोग की वस्तु है,प्रेम की वस्तु की नहीं | उससे प्रेम किया जाता है, उसके मन को संतुष्ट करने के लिए नहीं बल्कि अपनी  भोगलोलुपता को तुष्ट करने के लिए | स्त्री जब तक उसे देह सौंपती रहती है, प्रेम बना रहता है पर जैसे ही वह देह के दायरे से मुक्त होना चाहती है, उसे बदनाम किया जाता है उसके ही प्रेमी द्वारा | आज प्रेम को सरेआम नंगा किया जा रहा है तकनीकी माध्यमों द्वारा | उदय प्रकाश की कविता औरतेंप्रेम सन्दर्भ में स्त्री की त्रासदी के विभिन्न पक्षों को सूक्ष्मता से अनावृत्त करती है –“ एक औरत का चेहरा संगमरमर जैसा सफ़ेद है/...एक सीलिंग की कड़ी में बाँध रही है अपना दुपट्टा /उसके प्रेमी ने सार्वजनिक कर दिए हैं उसके फोटो और पत्र”10

स्त्री-शोषण के एक नए पक्ष को अंजना वर्मा की एक साजिश हो रही हैशीर्षक कविता में देखा जा सकता है | अड़तीस वर्ष की होनेवाली अंजना की आकांक्षा माता-पिता की स्वार्थवृत्ति के आगे लुटती रहती है | बहुराष्ट्रीय कंपनी की तमाम सुखसुविधाओं से लैस अंजना माता-पिता का बेटा बनकर ही रह जाती है | माता-पिता उसे बेटा संबोधित ही नहीं करते बल्कि उसकी स्वाभाविक जरूरतों और इच्छाओं की अनदेखी कर उसे बेटा ही समझने लगते हैं | स्त्री की अपनी जरूरतें होती हैं | इस जरूरत को शिद्दत से महसूस करती अंजना का सब्र उम्र के अड़तीसवें पायदान पर टूट जाता है - उसे शिद्दत से महसूस होता है /कि वर्षों से शापा जाता रहा है उसे /.....‘अखबार के पन्नों में वैवाहिक देखते ही / वह चीखना चाहती है अरे ! किसी को याद भी है में बेटी हूँ?11

जन्मदाता के स्वार्थी, असंवेदनशील रवैये का यह दृश्य वर्त्तमान समय का एक भयावह यथार्थ  है | यह कटु सच्चाई है कि वर्त्तमान समय में माता-पिता अपने सुख के लिए अच्छे पद पर विराजमान बेटी की स्वाभाविक जरूरतों को जानबूझकर अनदेखा ही नहीं कर रहे , उसे जबरन बेटा बने रहने के लिए मजबूर भी कर रहे  हैं |

स्त्री-सुरक्षा आज एक गंभीर प्रश्न बन गया  है | निजी संबंधियों द्वारा लड़कियों को बेचने, उनका यौन शोषण करने की घटना में निरंतर इजाफा हो रहा है | जवान होती लड़की को अपने घर के पुरूषों से चाहे वह उनका जैविक पिता ही क्यों न हो सुरक्षित रख पाना अत्यंत कठिन होता जा रहा है खासकर तब  जब वह आर्थिक रूप से विपन्न हो | आज स्त्री पुरूष के लिए विपन्नता दूर करने का जरिया बन रही है | भगवत रावत की भरोसाकविता स्त्री-शोषण के इस त्रासद पहलू पर आलोकपात करती है –“ वह बरतन वाली बाई /....उसके मैले से झोले में /उसकी लड़की की /बहुत पुरानी फोटो है / जब वह लड़की थी/तेरह की या चौदह की /वह कहती है / छह-सात साल पहले/उसके /अपने पापी घरवाले ने /अपने ही गुंडे भाई ने / मिलकर/ उसकी लड़की को बेच दिया”12

देहप्रेमियों द्वारा प्रेम के नाम पर तेज़ाब फेंकने, यौन-शोषण करने की घटना जिस तीव्रता से बढ़ रही उससे प्रत्येक सुन्दर बेटी का पिता भयभीत है | समकालीन कवि पवन करण अपनी कविता एक ख़ूबसूरत बेटी का पिता में जिस सूक्ष्मता और गंभीरता के साथ एक पिता की मानसिक स्थिति का चित्रण करते हैं, वह समाज और व्यक्ति की निकृष्टता का बोध कराती है | पंद्रह साल की कच्ची उम्र में सच्चा प्रेम के नाम पर देह को समर्पण करने या करवाने की चिंता हर पिता की चिंता बन जाती है | इस उम्र में प्रेमावेग में गलत रास्ते पर चल पड़ना स्वाभाविक है और इसी स्वभाविकता के कारण कवि को अपनी 15 साल की बेटी की सुन्दरता चुभती है प्रेम की तीव्रता एकांत चाहती है और वह / प्रेमाभिव्यक्ति से देहाभिव्यक्ति की ओर बढ़ती है / और प्रेम में यह बढ़ना हो ही जाता है / मैं नहीं कहता कि देह अपवित्र चीज है/ लेकिन वह पवित्र भी नहीं उतनी /कि हर समय उसकी चिंता में घुलते रहा जाए’’13 

अपने वजूद को कायम रखने की जद्दोजहद से पीड़ित स्त्री का चित्र अरूण कमल की स्वप्न कविता में देखा जा सकता है खूँटे से बंधी बछिया-सी जहाँ तक रस्सी जाती, भागती /गर्दन ऐंठने तक खूँटे को डिगाती /वह बार बार भागती रही /बार बार हर रात एक ही सपना देखती/ ताकि भूल न जाए मुक्ति का स्वप्न / बदले न भी जीविन तो जीवित बचे बदलने का यत्न |14

स्त्री के इसी प्रयास के फलस्वरूप आज थोड़ा-बहुत परिवर्तन आया है | प्रत्येक क्षेत्र में उसकी उपस्थिति देखने को मिल रही है | शिक्षा, साहित्य, कला, वाणिज्य से लेकर सेना, चिकित्सा,खेल आदि सभी जगहों पर वह देश और परिवार का मान बढ़ा रही है पर विडंबना यह है कि उन्हें आज भी उन्हें वह  अपेक्षित सम्मान नहीं मिल रहा जिसकी वह अधिकारणी है | आज भी उन्हें समाज और परिवार द्वारा  दैहिक और मानसिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है |

                                                                                                                                   द्वारा - शशि शर्मा 

सन्दर्भ सूची :

1. रेखा कस्तवार, स्त्री चिंतन की चुनौतियाँ, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,पृ.-24

2. रघुवीर सहाय, प्रतिनिधि कविताएँ, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,पृ.-29

3. संपादक –एकांत  श्रीवास्तव और कुसुम खेमानी,  वागर्थ, अगस्त 2014, कोलकाता, पृ.-108

4. संपादक-विजय बहादुर सिंह, वागर्थ, जुलाई 2009, कोलकाता, पृ.-88

5. .अरविन्दाक्षन,समकालीन हिन्दी कविता,राधाकृष्ण प्रकाशन प्रा.लिमिटेड,नयी दिल्ली, पृ.-116

6. संपादक- सुधीर सुमन और प्रणय कृष्ण, समकालीन जनमत, जनवरी-मार्च 2012, पटना,पृ.-64

7. पवन करण, स्त्री मेरे भीतर, राजकमल पेपरबैक्स, नयी दिल्ली, पहला संस्करण-2006,पृ.-46

8. सुधीश पचौरी, स्त्री देह के विमर्श, आत्माराम एंड संस,दिल्ली ,संस्करण-2000,पृ.-80

9. मनीषा झा,शब्दों की दुनिया, आनंद प्रकाशन, कोलकाता, पहला संस्करण-2013,पृ.-80

10.उदय प्रकाश, पचास कविताएँ : नयी सदी के लिए चयन, वाणी प्रकाशन , नयी दिल्ली ,पृ.- 67

11. संपादक- एकांत श्रीवास्तव  और कुसुम खेमानी ,वागर्थ, फरवरी-2015, कोलकाता,पृ.-101

     12. भगवत रावत, प्रतिनिधि कविताएँ , राजकमल प्रकाशन प्रा.लि. ,नयी दिल्ली -2014, पृ.-42

     13.पवन करण,स्त्री मेरे भीतर,राजकमल पेपरबैक्स, नयी दिल्ली, पहला संस्करण-2006,पृ.-20

     14.अरूण कमल, पचास कविताएँ : नयी सदी के लिए चयन ,वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली पहला संस्करण -2011, पृ.- 64